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ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने फिलिस्तीन को दी देश के तौर पर मान्यता: वैश्विक कूटनीति में बड़ा बदलाव

नई दिल्ली, 22 सितंबर 2025: एक ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण वैश्विक घटनाक्रम में, ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र के रूप में आधिकारिक मान्यता प्रदान कर दी है। यह फैसला मध्य पूर्व की राजनीति में एक बड़े बदलाव का संकेत देता है और इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष के द्वि-राष्ट्र समाधान की दिशा में एक निर्णायक कदम माना जा रहा है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने इस कदम को शांति प्रक्रिया को मजबूत करने वाला बताया है, जबकि कनाडा जी7 देशों में ऐसा करने वाला पहला राष्ट्र बन गया है। इस घोषणा से वैश्विक कूटनीति पर दूरगामी प्रभाव पड़ने की संभावना जताई जा रही है, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक से ठीक पहले।

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ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने फिलिस्तीन को दी देश के तौर पर मान्यता: वैश्विक कूटनीति में बड़ा बदलाव

घोषणाओं का विवरण

यह मान्यता 21 सितंबर 2025 को की गई, जब इन तीनों देशों ने लगभग समन्वित रूप से अपनी घोषणाएं कीं। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने लंदन में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "यह कदम इजरायल और फिलिस्तीन के बीच स्थायी शांति सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है। द्वि-राष्ट्र समाधान ही एकमात्र व्यावहारिक रास्ता है।" कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने ओटावा से घोषणा करते हुए जोर दिया कि यह निर्णय मानवाधिकारों और अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुरूप है, और कनाडा जी7 में पहला देश है जिसने यह कदम उठाया।

ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री पेनी वोंग ने कैनबरा में एक आधिकारिक बयान जारी कर कहा, "ऑस्ट्रेलिया फिलिस्तीन को एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता देता है। यह हमारे मध्य पूर्व नीति में संतुलन लाने का प्रयास है।" दिलचस्प बात यह है कि पुर्तगाल ने भी इसी दिन फिलिस्तीन को मान्यता दी, जिससे यह लगता है कि यह एक समन्वित अंतरराष्ट्रीय प्रयास का हिस्सा हो सकता है।

मुख्य बिंदु और प्रभाव

इस फैसले के प्रमुख पहलू इस प्रकार हैं:

  • बड़ा कूटनीतिक बदलाव: यह निर्णय पश्चिमी देशों की मध्य पूर्व नीति में एक बड़े परिवर्तन का प्रतीक है। अब तक, अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देश इजरायल के मजबूत समर्थक रहे हैं, लेकिन हाल के वर्षों में फिलिस्तीनी अधिकारों पर बढ़ते दबाव ने नीतियों में बदलाव लाया है।
  • द्वि-राष्ट्र समाधान पर जोर: इन देशों का मानना है कि फिलिस्तीन की मान्यता से इजरायल और फिलिस्तीन के बीच शांति वार्ता को नई गति मिलेगी। संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के अनुरूप, यह दो अलग-अलग राष्ट्रों के अस्तित्व को बढ़ावा देगा।
  • अंतरराष्ट्रीय प्रभाव: फ्रांस जैसे अन्य देशों के भी जल्द ही ऐसा करने की उम्मीद है, जिससे फिलिस्तीन को संयुक्त राष्ट्र में पूर्ण सदस्यता मिलने की संभावना बढ़ सकती है। यह कदम गाजा और वेस्ट बैंक में जारी संघर्ष को प्रभावित कर सकता है।

इजरायल और फिलिस्तीन की प्रतिक्रियाएं

इजरायल ने इस फैसले की कड़ी आलोचना की है। इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इसे "आतंकवाद को पुरस्कृत करने वाला" बताते हुए कहा कि इससे शांति प्रक्रिया को नुकसान पहुंचेगा। इजरायली विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर इन देशों से अपने राजदूतों को वापस बुलाने की धमकी दी है।

दूसरी ओर, फिलिस्तीनी नेतृत्व ने इस फैसले का गर्मजोशी से स्वागत किया है। फिलिस्तीनी अथॉरिटी के अध्यक्ष महमूद अब्बास ने कहा, "यह न्याय और स्वतंत्रता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। हम इन देशों के आभारी हैं।" गाजा में हमास ने भी इसे "ऐतिहासिक जीत" करार दिया है।

पृष्ठभूमि और भविष्य की संभावनाएं

फिलिस्तीन को अब तक 140 से अधिक देश मान्यता दे चुके हैं, लेकिन प्रमुख पश्चिमी देशों की यह पहली बड़ी लहर है। 2024 में स्पेन, आयरलैंड और नॉर्वे जैसे देशों ने मान्यता दी थी, जिसने इस ट्रेंड को गति दी। विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका पर भी दबाव बढ़ेगा, हालांकि वर्तमान प्रशासन ने अभी तक कोई संकेत नहीं दिया है।

यह घटनाक्रम वैश्विक स्तर पर विभाजन पैदा कर सकता है, लेकिन शांति की उम्मीद भी जगा रहा है। अमृत खबर इस मुद्दे पर निरंतर अपडेट प्रदान करेगा।

(स्रोत: अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसियां और आधिकारिक बयान। यह लेख तथ्यों पर आधारित है और किसी भी पक्ष का समर्थन नहीं करता।)

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