वोट चोरी या राजनीतिक नैरेटिव? राहुल गांधी के आरोपों से गरमाई सियासत



राहुल गांधी का दावा:
राहुल गांधी का कहना है कि हालिया चुनावों में ईवीएम और चुनावी प्रक्रिया से छेड़छाड़ हुई है। उनका तर्क है कि यह केवल कांग्रेस की हार का सवाल नहीं बल्कि लोकतंत्र की विश्वसनीयता का संकट है।
सोशल मीडिया की गूंज:
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समर्थक सुर में: कांग्रेस समर्थक इसे “ईवीएम फ्रॉड” करार देते हुए #SaveDemocracy जैसे हैशटैग चला रहे हैं।
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विरोधी सुर में: बीजेपी समर्थक इसे “हार की हताशा” बता रहे हैं और कांग्रेस की घटती सीटों पर तंज कस रहे हैं।
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तटस्थ आवाज़ें: कुछ लोग इसे गंभीर आरोप मानते हुए सबूत की मांग कर रहे हैं, ताकि चुनाव आयोग की विश्वसनीयता बनी रहे।
जनता की नब्ज़:
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शहरी मतदाता इन आरोपों को “हार की कुंठा” मानकर खारिज कर रहे हैं।
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ग्रामीण इलाकों में ईवीएम पर शंका की गुंजाइश जरूर दिख रही है, खासकर तब जब अतीत में तकनीकी गड़बड़ियों की खबरें सामने आई हैं।
संपादकीय दृष्टि:
राहुल गांधी के आरोप चाहे कितने भी राजनीतिक लगें, लेकिन इस बहस ने एक अहम सवाल खड़ा कर दिया है – क्या भारत का चुनावी तंत्र जनता के भरोसे पर खरा उतर रहा है?
लोकतंत्र में सिर्फ चुनाव जीतना या हारना ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह भी ज़रूरी है कि हर मतदाता को यह विश्वास रहे कि उसका वोट गिना गया और सही जगह पहुँचा।
चुनाव आयोग पहले भी ऐसे आरोपों को खारिज कर चुका है। लेकिन जब लगातार “वोट चोरी” जैसे शब्द गूंजते हैं, तो यह चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर छाया डालते हैं। ऐसे में ज़रूरी है कि आयोग तथ्यों और तकनीकी पारदर्शिता के साथ जनता का विश्वास मज़बूत करे।

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