एक नया राजनीतिक अध्याय: AAP ने 11 प्रत्याशी उतारे, गठबंधनों को नकारा, बिहार के पारंपरिक सत्ता केंद्रों के खिलाफ 'दिल्ली मॉडल' पेश



पटना, 10 अक्टूबर 2025: आम आदमी पार्टी (AAP) ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए 6 अक्टूबर को 11 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर राजनीतिक हलचल मचा दी है। गठबंधन से तौबा करते हुए AAP ने खुद को तीसरे मजबूत विकल्प के रूप में पेश किया है, जहां सालों से दो-ध्रुवीय राजनीति हावी रही है।
AAP का जोश: 243 सीटों पर अकेले दंगल
AAP ने बिहार की 243 विधानसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर सियासी पारा चढ़ा दिया है। यह कदम 6 और 11 नवंबर को होने वाले मतदान से ठीक पहले आया है, जिसने NDA (भाजपा-जदयू) और महागठबंधन (राजद-कांग्रेस) जैसे दिग्गजों को चौंका दिया है। पार्टी का लक्ष्य पारंपरिक जाति-आधारित राजनीति को तोड़कर शिक्षा, स्वास्थ्य और शासन में क्रांति लाना है।
डॉ. मीरा सिंह - बेगूसराय
भानु भारतीय - कसबा (पूर्णिया)
योगी चौपाल - कुशेश्वरस्थान (दरभंगा)
अरुण कुमार रजक - फुलवारीशरीफ (पटना)
डॉ. पंकज कुमार - बांकीपुर (पटना)
अमित कुमार सिंह - तरैया (सारण)
शुभदा यादव - बेनीपट्टी (मधुबनी)
अखिलेश नारायण ठाकुर - परिहार (सीतामढ़ी)
अशरफ आलम - किशनगंज
अशोक कुमार सिंह - गोविंदगंज (मोतिहारी)
पूर्व कैप्टन धर्मराज सिंह - बक्सर
प्रदेश अध्यक्ष राकेश कुमार यादव और अन्य नेताओं की मुहर वाले इस सूची में विविधता देखने को मिली है, जो AAP की व्यापक अपील को दर्शाती है। प्रमुख नाम इस प्रकार हैं:
- डॉ. एम सिंह - बेगूसराय (राजनीतिक रूप से संवेदनशील सीट)
- अखिलेश नारायण ठाकुर - सीतामढ़ी (परिहार, युवा चेहरा)
- अरुण कुमार रजक - पटना (फुलवारी, राजधानी में मजबूत दावेदारी)
- पूर्व कैप्टन धर्मराज सिंह - बक्सर (मसौर, सैनिक वोटरों पर नजर)
ये चेहरे स्थानीय मुद्दों और विश्वसनीयता के आधार पर चुने गए हैं, जो स्थापित सत्ता को चुनौती देने की रणनीति को रेखांकित करते हैं।
तीसरा मोर्चा: दिल्ली-पंजाब का फॉर्मूला
AAP की रणनीति साफ है - दिल्ली और पंजाब में मिली सफलता के मॉडल को बिहार में लागू करना। यह मॉडल कल्याणकारी योजनाओं पर केंद्रित है, न कि पारंपरिक पहचान की राजनीति पर।
बिहार प्रभारी अजय यादव ने जोर देकर कहा, "दशकों से बिहार की जनता को जाति-धर्म के नाम पर ठगा गया। हमारा गठबंधन 7.42 करोड़ लोगों से है, न कि पार्टियों से। हम मुफ्त बिजली, बेहतरीन स्कूल, मोहल्ला क्लीनिक, और भ्रष्टाचार मुक्त सरकार का वादा करते हैं।" यह बयान तेजस्वी यादव के सामाजिक न्याय और नीतीश कुमार के विकास एजेंडे के खिलाफ एक नया नजरिया पेश करता है।
गठबंधन से दूरी बनाकर AAP अपनी सत्ता-विरोधी छवि को बरकरार रखना चाहती है, लेकिन वोट बैंक के बंटवारे का जोखिम भी उठा रही है।
बिहार की सियासी जमीन: बदलाव की गुंजाइश?
बिहार की राजनीति 1990 के दशक से मंडल (सामाजिक न्याय) और कमंडल (हिंदुत्व) के इर्द-गिर्द घूमती रही है। राजद (लालू प्रसाद यादव) और भाजपा-जदयू ने इस द्वंद्व को हावी रखा। लेकिन आज युवाओं और शहरी मध्यम वर्ग में इन कथाओं से थकान दिख रही है।
बेरोजगारी से पलायन, खराब शिक्षा, और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी जैसे मुद्दे अब हावी हैं। AAP इन मुद्दों पर फोकस कर 14 लाख नए युवा मतदाताओं को लुभाने की कोशिश में है, जो बदलाव चाहते हैं।
रास्ते की चुनौतियां
AAP के सामने मुश्किलें कम नहीं हैं:
- संगठन की कमी: भाजपा और राजद के मुकाबले AAP का बिहार में संगठन कमजोर है। 243 सीटों पर नेटवर्क बनाना टेढ़ी खीर होगी।
- सीएम चेहरा: नीतीश और तेजस्वी के सामने AAP का कोई बड़ा नेता नहीं।
- जाति का प्रभाव: विकास की बात शहरी इलाकों में चले, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में जाति हावी है।
- संसाधन: भाजपा की फंडिंग और राजद के नेटवर्क से टक्कर लेना मुश्किल।
प्रभाव: वोट काटने की कला
AAP भले ही सीटें न जीते, लेकिन इसका असर पड़ेगा। विश्लेषकों का मानना है कि यह शहरी सवर्ण (भाजपा) और गरीब वोटरों (महागठबंधन) को प्रभावित कर सकती है। प्रशांत किशोर की जन सुराज के साथ बहुकोणीय मुकाबला जीत का अंतर कम कर सकता है।
राष्ट्रीय नजरिया और भविष्य
अरविंद केजरीवाल के लिए यह चुनाव राष्ट्रीय विस्तार का हिस्सा है। दिल्ली-पंजाब की सफलता के बाद बिहार में अच्छा प्रदर्शन 2029 के लोकसभा चुनावों के लिए मंच तैयार करेगा। नतीजे 14 नवंबर 2025 को आएंगे - क्या झाड़ू पुरानी व्यवस्था को साफ करेगी या बस धूल उड़ाएगी? यह देखना बाकी है।

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