बिहार महागठबंधन में सीटों पर फंसा पेंच, कांग्रेस के घटते ग्राफ पर चिंता



बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का बिगुल बज चुका है और विपक्षी महागठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर सियासी गहमागहमी तेज़ हो गई है। महागठबंधन की रणनीति एकजुट होकर सत्ता परिवर्तन का संदेश देने की है, लेकिन सहयोगी दलों के बीच सीटों की संख्या पर दावेदारी ने नई मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। सवाल यह भी है कि क्या कांग्रेस इस समीकरण में कमजोर कड़ी बनती जा रही है?
सीट बंटवारे का गणित: दावों और प्रतिदावों की राजनीति
राष्ट्रीय जनता दल (RJD), जो महागठबंधन का सबसे बड़ा घटक दल है, अपनी मज़बूत राजनीतिक ज़मीन और संगठनात्मक ढांचे के आधार पर अधिक सीटों की दावेदारी कर रहा है। दूसरी ओर, वाम दल और छोटे क्षेत्रीय सहयोगी भी अपने-अपने क्षेत्रों की पकड़ को देखते हुए हिस्सेदारी चाहते हैं।
इस खींचतान के बीच कांग्रेस की स्थिति असहज होती दिख रही है। 2020 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को 70 सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिला था, लेकिन पार्टी महज़ 19 सीटें जीत पाई। यही कारण है कि सहयोगी दल अब कांग्रेस को उतनी बड़ी हिस्सेदारी देने के मूड में नज़र नहीं आ रहे।
कांग्रेस का घटता ग्राफ और बढ़ती चिंता
कांग्रेस का जनाधार लगातार सिमटता जा रहा है। ज़मीनी स्तर पर संगठन की कमजोरी, नए चेहरों की कमी और नेतृत्व की अनिश्चितता पार्टी के लिए चुनौती बन चुकी है। विपक्षी खेमे में जहां RJD और वाम दल सक्रियता के साथ जनता के बीच मज़बूती से खड़े हैं, वहीं कांग्रेस अपनी भूमिका साबित करने के लिए संघर्ष करती दिख रही है।
महागठबंधन के भीतर यह चर्चा ज़ोर पकड़ रही है कि कांग्रेस को ज्यादा सीटें देने से गठबंधन के प्रदर्शन पर विपरीत असर पड़ सकता है।
शीर्ष नेताओं की बैठक से उम्मीद
हालात को देखते हुए, महागठबंधन के शीर्ष नेताओं की जल्द ही बैठक बुलाए जाने की संभावना है। इस बैठक में सीटों का अंतिम बंटवारा और चुनावी रणनीति पर मंथन होगा। चुनौती यह है कि सीटों का बंटवारा ऐसा हो जो न केवल सभी दलों को संतुष्ट करे बल्कि जनता के बीच एकजुटता का स्पष्ट संदेश भी भेजे।
यदि इस पेच को समय रहते सुलझा लिया गया, तो महागठबंधन मज़बूत होकर मैदान में उतर सकता है। लेकिन अगर खींचतान लंबी खिंची, तो विपक्षी एकजुटता की तस्वीर धुंधली पड़ सकती है।
जनता की नज़र और बड़ा सवाल
बिहार की जनता इस पूरे घटनाक्रम को ध्यान से देख रही है। महागठबंधन का दावा है कि वह बेरोज़गारी, महंगाई और शासन व्यवस्था के मुद्दों पर जनता की आवाज़ बनेगा। लेकिन अगर सीट बंटवारे को लेकर अंदरूनी खींचतान लंबी चली, तो जनता में यह संदेश जा सकता है कि गठबंधन अभी भी सत्ता के बजाय हिस्सेदारी के गणित में उलझा हुआ है।

इस समाचार को साझा करें:
राज्य की अन्य खबरें
