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चुनावी मौसम में शराब तस्करी की कोशिश नाकाम: बनारसी अचार के डिब्बों में छुपाई गई थी अंग्रेजी शराब

चुनाव से पहले बिहार-उत्तर प्रदेश सीमा पर पुलिस ने तस्करी की एक बड़ी कोशिश को नाकाम कर दिया है। यह मामला सिर्फ कानून-व्यवस्था से जुड़ा नहीं, बल्कि लोकतंत्र और जनादेश की पवित्रता पर मंडराते खतरों की ओर भी इशारा करता है।
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चुनावी मौसम में शराब तस्करी की कोशिश नाकाम: बनारसी अचार के डिब्बों में छुपाई गई थी अंग्रेजी शराब

अचार के डिब्बों में छिपी थी शराब

सूत्रों के मुताबिक, तस्कर अंग्रेजी शराब की बड़ी खेप को बनारसी अचार के डिब्बों की आड़ में बिहार भेजने की कोशिश कर रहे थे। पुलिस की सतर्कता और खुफिया जानकारी के आधार पर यह खेप पकड़ी गई। तस्करों ने पारंपरिक खाद्य सामग्री की ओट लेकर कानून को धोखा देने का प्रयास किया, लेकिन वह सफल नहीं हो सके।

चुनाव और शराब का रिश्ता

भारत के चुनावी इतिहास में यह कई बार देखा गया है कि शराब और पैसा वोटरों को प्रभावित करने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। चुनाव आयोग ने इसे रोकने के लिए कई कड़े प्रावधान किए हैं। लेकिन तस्करों और दलालों का नेटवर्क हर बार नए तरीके खोजता है।
यह घटना साफ बताती है कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया को दूषित करने की साजिशें कितनी गहरी हैं।

बिहार में शराबबंदी और चुनौतियाँ

बिहार में 2016 से पूर्ण शराबबंदी लागू है। सरकार का दावा है कि इससे सामाजिक और स्वास्थ्य सुधार हुआ है। लेकिन आए दिन तस्करी की घटनाएँ इस बात को उजागर करती हैं कि ज़मीनी स्तर पर अभी भी कई खामियाँ और चुनौतियाँ मौजूद हैं।
यह तस्करी सिर्फ कानून तोड़ने की कोशिश नहीं, बल्कि लाखों परिवारों के भविष्य और समाज की सेहत से खिलवाड़ भी है।

संपादकीय दृष्टिकोण

इस कार्रवाई के पीछे छुपा बड़ा संदेश यही है कि लोकतंत्र की पवित्रता और जनता के फैसले को किसी भी कीमत पर प्रभावित नहीं होने देना चाहिए। प्रशासन और पुलिस को सतर्क रहना होगा ताकि ऐसी कोशिशें बार-बार न दोहराई जाएँ।
सवाल यह भी है कि आखिरकार यह शराब की खेप किन तक पहुँचने वाली थी और इसका इस्तेमाल कहाँ होना था? क्या यह सिर्फ अवैध कमाई का साधन था या फिर चुनावी राजनीति का हथियार?

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