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शराबबंदी कानून पर सुप्रीम कोर्ट सख्त: जेलों में भीड़ को लेकर बिहार सरकार को लगाई कड़ी फटकार, सभी आरोपियों को जमानत देने की टिप्पणी

नई दिल्ली, 22 सितंबर 2025 : बिहार में शराबबंदी कानून की कड़ाई पर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर नकेल कस दी है। जेलों में बढ़ती भीड़ और कोर्टों में लंबित बेल आवेदनों को लेकर शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा, "क्यों न सभी शराबबंदी के आरोपियों को जमानत दे दी जाए?" यह टिप्पणी बिहार की नीतीश कुमार सरकार की शराबबंदी नीति को एक बार फिर सवालों के घेरे में ला खड़ी कर रही है, खासकर आगामी विधानसभा चुनावों के ठीक पहले।

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शराबबंदी कानून पर सुप्रीम कोर्ट सख्त: जेलों में भीड़ को लेकर बिहार सरकार को लगाई कड़ी फटकार, सभी आरोपियों को जमानत देने की टिप्पणी

यह मामला सुप्रीम कोर्ट में एक बेल याचिका पर सुनवाई के दौरान सामने आया, जहां जस्टिस संजय किशन कौल और एमएम सुंदरेश की बेंच ने बिहार सरकार के वकील से कड़े सवाल किए। कोर्ट ने कहा कि बिना किसी प्रभाव मूल्यांकन के लागू की गई यह नीति जेलों को ओवरलोड कर रही है और न्यायिक प्रक्रिया को ठप कर रही है।

कोर्ट की सुनवाई का विवरण

सुनवाई 21 सितंबर 2025 को हुई, जब बेंच ने शराबबंदी कानून के तहत दर्ज मामलों में गिरफ्तारियों की बाढ़ पर नाराजगी जताई। बिहार में 2016 के बिहार प्रोहिबिशन एंड एक्साइज एक्ट के तहत अब तक 4 लाख से अधिक मामले दर्ज हो चुके हैं, जिनमें से ज्यादातर उपभोग या कब्जे के मामलों से जुड़े हैं। जेलों में क्षमता से 30-40% अधिक कैदी भरे हुए हैं, जिनमें शराबबंदी के उल्लंघन के मामलों के आरोपी बड़ी संख्या में हैं।

कोर्ट ने सरकार से पूछा, "क्या आपके पास कोई डेटा है जो दिखाए कि शराबबंदी के बाद उपभोग में कमी आई है?" साथ ही, बेंच ने सुझाव दिया कि उपभोग के मामलों में जुर्माना लगाकर जेल भेजने की बजाय वैकल्पिक सजा पर विचार किया जाए। यह टिप्पणी 2022 में कोर्ट की पिछली आलोचना की याद दिलाती है, जब सरकार को कानून में संशोधन करने के लिए मजबूर होना पड़ा था।

मुख्य बिंदु: कोर्ट की चिंताएं और प्रभाव

इस मामले के प्रमुख पहलू इस प्रकार हैं:

  • जेलों में ओवरक्राउडिंग: बिहार की जेलों की क्षमता 55,000 कैदियों की है, लेकिन वर्तमान में 76,000 से अधिक कैदी बंद हैं। शराबबंदी के मामलों से जुड़े 3.5 लाख से अधिक गिरफ्तारियां हुई हैं, जो जेलों पर अतिरिक्त बोझ डाल रही हैं।
  • कोर्टों पर दबाव: 20,000 से अधिक बेल आवेदन लंबित हैं, जो न्यायिक प्रक्रिया को सुस्त कर रहे हैं। कोर्ट ने इसे "विधायी पूर्वानुमान की कमी" का मामला बताया।
  • नीति की असफलता: कोर्ट ने सरकार से प्रभाव अध्ययन की मांग की, क्योंकि अवैध शराब का कारोबार बढ़ा है, जिससे हूच त्रासदियां भी हो रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कानून गरीबों को अधिक प्रभावित कर रहा है।
  • राजनीतिक प्रभाव: चुनावी साल में यह मुद्दा गर्म हो सकता है। विपक्ष (आरजेडी-कांग्रेस) इसे सरकार पर हमले का हथियार बना सकता है, जबकि नीतीश कुमार इसे महिलाओं के सशक्तिकरण से जोड़ते हैं।

सरकार और विपक्ष की प्रतिक्रियाएं

बिहार सरकार ने कोर्ट के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि कानून में पहले ही संशोधन किए गए हैं, जैसे उपभोग के मामलों में जुर्माना लगाना। हालांकि, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी सूत्रों का कहना है कि जल्द ही नई समीक्षा की जाएगी। विपक्षी नेता तेजस्वी यादव ने ट्वीट कर कहा, "शराबबंदी का ढोंग अब बेनकाब हो गया। जेलें भर रही हैं, लेकिन भ्रष्टाचार बढ़ रहा है।" सोशल मीडिया पर भी यह मुद्दा ट्रेंड कर रहा है, जहां यूजर्स इसे "चुनावी मुद्दा" बता रहे हैं।

पटना हाईकोर्ट ने भी हाल ही में (नवंबर 2024) इसी कानून पर टिप्पणी की थी, जिसमें कहा गया कि यह अधिकारियों के लिए "बड़ी कमाई का साधन" बन गया है।

पृष्ठभूमि और भविष्य की संभावनाएं

बिहार में शराबबंदी 2016 से लागू है, जिसका उद्देश्य महिलाओं की सुरक्षा और सामाजिक सुधार था। लेकिन, 30,000 करोड़ रुपये के राजस्व नुकसान, अवैध व्यापार और जेलों की स्थिति ने इसे विवादास्पद बना दिया। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से सरकार को कानून में और बदलाव करने पड़ सकते हैं, जैसे प्लिया बारगेनिंग को शामिल करना।

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सुधार नहीं हुए, तो यह 2025 के चुनावों में बड़ा मुद्दा बनेगा। अमृत खबर इस मामले पर अपडेट देता रहेगा।

(स्रोत: सुप्रीम कोर्ट रिकॉर्ड, प्रमुख समाचार एजेंसियां और आधिकारिक बयान। यह लेख तथ्यों पर आधारित है और निष्पक्ष दृष्टिकोण रखता है।)

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