लद्दाख में हिंसक विरोध प्रदर्शन: चार की मौत, कर्फ्यू, सोनम वांगचुक का अनशन समाप्त
25 sept 2025 leh : लेह की सड़कों पर खूनखराबा, मांगों की पुकार में चार प्रदर्शनकारी शहीद, शहर में तनाव चरम पर! लेह में भड़की हिंसा, लद्दाख विरोध प्रदर्शन ने लिया खतरनाक रूप, लद्दाख की राजधानी लेह में राजनीतिक विरोध प्रदर्शन बुधवार को हिंसक हो गया, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई और 70-80 से अधिक घायल हुए। स्थानीय मांगों को लेकर चले आंदोलन ने अब हिंसा का रूप ले लिया है, जिसके बाद प्रशासन ने कर्फ्यू लगा दिया। सोनम वांगचुक के नेतृत्व में चल रहा यह आंदोलन छठी अनुसूची और पूर्ण राज्य की मांग पर केंद्रित है।
यह घटना लद्दाख विरोध प्रदर्शन की लंबी श्रृंखला का हिस्सा है, जो 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद तेज हुई। केंद्र सरकार ने हिंसा की निंदा की है, लेकिन प्रदर्शनकारियों का कहना है कि उनकी मांगें अनसुनी हैं।



प्रदर्शन कैसे बने हिंसक: घटनाक्रम की पूरी तस्वीर
24 सितंबर 2025 को लेह में शांतिपूर्ण लद्दाख विरोध प्रदर्शन की शुरुआत हुई, लेकिन जल्द ही यह हिंसा में बदल गया। प्रदर्शनकारियों ने भाजपा कार्यालय, लेह हिल काउंसिल के दफ्तर में तोड़फोड़ की और सीआरपीएफ के वाहनों को आग के हवाले कर दिया।
पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पों में चार प्रदर्शनकारी मारे गए, जबकि 70 से अधिक लोग घायल हुए, जिनमें कई पुलिसकर्मी भी शामिल हैं। आंखों देखी हालातों के मुताबिक, भीड़ ने पथराव किया, जिसके जवाब में सुरक्षा बलों ने लाठीचार्ज और आंसू गैस का सहारा लिया।
यह हिंसा लद्दाख के युवाओं की निराशा का प्रतीक है, जो बेरोजगारी और सांस्कृतिक अस्मिता की रक्षा के लिए सड़कों पर उतर आए।
मुख्य मांगें: पूर्ण राज्य से लेकर छठी अनुसूची तक
लद्दाख विरोध प्रदर्शन का मूल कारण स्थानीय लोगों की लंबे समय से चली आ रही मांगें हैं। सबसे प्रमुख है लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देना, जबकि वर्तमान में यह केंद्र शासित प्रदेश है। प्रदर्शनकारी चाहते हैं कि लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किया जाए, जो आदिवासी क्षेत्रों को भूमि, संस्कृति और पहचान की सुरक्षा के लिए अधिक स्वायत्तता प्रदान करती है।
अन्य मांगों में शामिल है अलग लोक सेवा आयोग (पीएससी) का गठन, ताकि स्थानीय युवाओं को सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता मिले और बेरोजगारी की समस्या कम हो। साथ ही, लोकसभा में लद्दाख के लिए दो सीटें—एक लेह के लिए और दूसरी कारगिल के लिए—सुनिश्चित करने की बात उठाई गई है।
सोनम वांगचुक, प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षाविद, ने इन मांगों के समर्थन में पिछले 15 दिनों से अनशन किया था। हिंसा भड़कने के बाद उन्होंने शांति की अपील करते हुए अपना अनशन समाप्त कर दिया। वांगचुक ने इसे "Gen-Z क्रांति" करार दिया, कहा, "यह युवाओं की आवाज है, जो अपनी पहचान बचाने के लिए लड़े जा रहे हैं।"
सरकार की प्रतिक्रिया: बातचीत का रास्ता या दमन?
केंद्र सरकार ने लद्दाख में हिंसक प्रदर्शन की कड़ी निंदा की है। गृह मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि हिंसा किसी भी मांग को हल नहीं करती और सोनम वांगचुक व अन्य आंदोलनकारियों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया। मंत्रालय ने जोर दिया कि सरकार लद्दाख के लोगों की संवैधानिक सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।
हालांकि, अगली महत्वपूर्ण विकास के तौर पर, गृह मंत्रालय लेह एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत कर रहा है। 6 अक्टूबर 2025 को प्रस्तावित अगली बैठक में इन मांगों पर चर्चा होने की उम्मीद है। प्रशासन ने लेह शहर में कर्फ्यू लगाने के साथ-साथ अतिरिक्त सुरक्षा बल तैनात किए हैं, ताकि स्थिति नियंत्रण में रहे।
विपक्षी दलों ने भी सरकार से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। कांग्रेस के एक नेता ने कहा, "लद्दाख की मांगें जायज हैं; हिंसा का जवाब दमन नहीं, संवाद होना चाहिए।"
लद्दाख का ऐतिहासिक संदर्भ: 2019 से चली आ रही असंतोष की आग
लद्दाख विरोध प्रदर्शन की जड़ें 2019 में जम्मू-कश्मीर से अलग कर केंद्र शासित प्रदेश बनाने के फैसले में हैं। तत्कालीन समय में स्थानीय लोगों ने छठी अनुसूची की मांग की थी, लेकिन वह पूरी नहीं हुई। इसके परिणामस्वरूप, पर्यटन पर निर्भर अर्थव्यवस्था के बावजूद बेरोजगारी बढ़ी और सांस्कृत्विक चिंताएं उभरीं।
लेह और कारगिल के बीच क्षेत्रीय विभाजन ने भी तनाव बढ़ाया है। बौद्ध बहुल लेह स्वायत्तता चाहता है, जबकि शिया मुस्लिम कारगिल आर्थिक समानता की मांग करता है। ये राजनीतिक विरोध प्रदर्शन न केवल स्थानीय मुद्दे हैं, बल्कि भारत की संघीय संरचना पर सवाल उठाते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि मांगें अनसुनी रहीं, तो यह आंदोलन और फैल सकता है। लद्दाख की रणनीतिक महत्वता को देखते हुए, चीन सीमा पर तनाव के बीच यह स्थिति राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी चुनौती है।
व्यापक प्रभाव: क्या बदलेगी लद्दाख की राजनीति?
लद्दाख में हिंसक प्रदर्शन का असर पूरे देश पर पड़ेगा। यह पूर्ण राज्य और छठी अनुसूची जैसे मुद्दों को राष्ट्रीय बहस में ला सकता है, खासकर 2025 के चुनावी वर्ष में। स्थानीय अर्थव्यवस्था पहले ही प्रभावित हो चुकी है—पर्यटन ठप, व्यापार बंद।
भविष्य में, 6 अक्टूबर की बैठक निर्णायक होगी। यदि सरकार लोक सेवा आयोग या लोकसभा सीटों पर सकारात्मक कदम उठाती है, तो शांति बहाल हो सकती है। अन्यथा, सोनम वांगचुक जैसे नेताओं का आंदोलन नई ऊंचाइयों को छू सकता है।
लद्दाख के निवासियों की यह लड़ाई न केवल क्षेत्रीय स्वायत्तता की है, बल्कि संघीय भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों की भी परीक्षा है। क्या केंद्र इन मांगों को सुन पाएगा, या हिंसा का चक्र जारी रहेगा?

इस समाचार को साझा करें:
देश की अन्य खबरें
